शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

427. ज़िन्दगी लिख रही हूँ

ज़िन्दगी लिख रही हूँ

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लकड़ी के कोयले से 
आसमान पर ज़िन्दगी लिख रही हूँ 
उन सबकी 
जिनके पास शब्द तो हैं 
पर लिखने की आज़ादी नहीं,
तुम्हें तो पता ही है  
क्या-क्या लिखूँगी- 
वो सब जो अनकहा है 
और वो भी 
जो हमारी तक़दीर में लिख दिया गया था 
जन्म से पूर्व 
या शायद यह पता होने पर कि
दुनिया हमारे लिए होती ही नहीं है, 
बुरी नज़रों से बचाने के लिए
बालों में छुपाकर 
कान के नीचे काजल का टीका 
और दो हाथ आसमान से दुआ माँगती रही 
जाने क्या? 
पहली घंटी के साथ 
क्रमश बढ़ता रुदन 
सबसे दूर इतनी भीड़ में बड़ा डर लगा था 
पर बिना पढ़ाई ज़िन्दगी मुकम्मल कहाँ होती है,
वक़्त की दोहरी चाल
वक़्त की रंजिश   
वक़्त ने हठात जैसे जिस्म के लहू को सफ़ेद कर दिया
सब कुछ गडमगड 
सपने-उम्मीद-भविष्य
फड़फड़ाते हुए परकटे पंछी-से धाराशायी, 
अवाक्!
स्तब्ध! 
आह!
कहीं कोई किरण?
शायद नहीं!
दस्तूर तो यही है न!
जिस्म जब अपने ही लहू से रंग गया 
आत्मा जैसे मूक हो गई 
निर्लज्जता अब सवाल नहीं जवाब बन गई  
यही तो है हमारा अस्तित्व
भाग सको तो भाग जाओ 
कहाँ?
यह भी ख़ुद का निर्णय नहीं
लिखी हुई तक़दीर पर मूक सहमति 
आख़िरी निर्णय 
आसमान की तरफ दुआ के हाथ नहीं 
चिता के कोयले से 
आसमान पर ज़िन्दगी की तहरीर!

- जेन्नी शबनम (11. 11. 2013)
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16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब....!!
    आत्मा मूक हो गयी
    निर्लज्जता सवाल नहीं जवाब बन गई
    झकझोर देनेवाली रचना..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (07-12-2013) को "याद आती है माँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1454 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 09/12/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
    सूचनार्थ।

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    अभी तो इस मंच का अंकुर ही फुटा है, हमारा आप सब का प्रयास, प्रचार, हिंदी से स्नेह, हमारी शक्ति तथा आत्मविश्वास ही इसेमजबूति प्रदान करेगा।
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    एक मंच हम सब हिंदी प्रेमियों, रचनाकारों, पाठकों तथा हिंदी में रूचि रखने वालों का साझा मंच है। आप को केवल इस समुह कीअपनी किसी भी ईमेल द्वारा सदस्यता लेनी है। उसके बाद सभी सदस्यों के संदेश या रचनाएं आप के ईमेल इनबौक्स में प्राप्त कर पाएंगे कोई भी सदस्य इस समूह को सबस्कराइब कर सकता है। सबस्कराइब के लिये
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  4. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

    आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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  5. काले अक्षरों से जिंदगी के दुःख लिखे जाते है और आपने लिख दिया.....बुत खूब !
    नई पोस्ट नेता चरित्रं
    नई पोस्ट अनुभूति

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  6. मार्मिक ... निःशब्द हूँ पढ़ने के बाद ... पता नहीं कब तकदीर का लिखना अपने ही हाथो में होगा ...

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  7. बहुत बढियां लिखा है आपने.. सुन्दर भाव निदर्शन ..

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  8. बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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  9. आशाएं बनी रहें , मंगलकामनाएं !!

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  10. अभी आपकी कई रचनाएँ एक साथ पढ़ीं ..... हाइकु अपने में गहन भावों को समेटे हैं वहीं आपकी रचनाएँ गहन भाव व्यक्त कर रही हैं । भले ही कोयले से लिख रही हों पर आसमान पर तो ज़िंदगी की तहरीर लिख रही हैं न .... यही जिजीविषा चाहिए ...

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