क्रान्ति-बीज बन जाना
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रक्त-बीज से पनपकर
कोमल पंखुड़ियों-सी खिलकर
सूरज को मुट्ठी में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
नाज़ुक हथेलियों पर
अंगारों की लपटें दहकाकर
हिमालय को मन में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
कोमल काँधे पर
काँटों की फ़सलें उगाकर
फूलों को दामन में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
मन की सरहदों पर
सन्देहों के बाड़ लगाकर
प्यार को सीने में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
जीवन-पथ पर
जब वार करे कोई अपना बनकर
नश्तर बन पलटवार कर देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
अनुकम्पा की बात पर
भिड़ जाना इस अपमान पर
बन अभिमानी भले जीवन हार देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
सिर्फ़ अपने दम पर
सपनों को पंख लगाकर
हर हार को जीत में बदल देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना।
-जेन्नी शबनम (7.1.2013)
[पुत्री के 13वें जन्मदिन पर]
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