ज़िन्दगी स्वाहा
कब तक आख़िर मेढ़क बन कर रहें
आओ संग-संग,एक बड़ी छलाँग लगा ही लें
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आओ संग-संग,एक बड़ी छलाँग लगा ही लें
पार कर गए तो मंज़िल
गिर पड़े तो वही दुनिया, वही कुआँ, वही कुआँ के मेढ़क
टर्र-टर्र करते एक दूसरे को ताकते, ज़िन्दगी स्वाहा।
- जेन्नी शबनम (3. 3. 2013)
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