ज़िन्दगी स्वाहा
कब तक आख़िर मेढ़क बन कर रहें
आओ संग-संग,एक बड़ी छलाँग लगा ही लें
*******
आओ संग-संग,एक बड़ी छलाँग लगा ही लें
पार कर गए तो मंज़िल
गिर पड़े तो वही दुनिया, वही कुआँ, वही कुआँ के मेढ़क
टर्र-टर्र करते एक दूसरे को ताकते, ज़िन्दगी स्वाहा।
- जेन्नी शबनम (3. 3. 2013)
____________________
एक कोशिश तो बनती है ...!
जवाब देंहटाएंवही कुआँ के मेढक...
जवाब देंहटाएंटर्र-टर्र करते
एक दूसरे को ताकते
ज़िंदगी स्वाहा..bahut sahi kaha
वाह....!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है।
एक कोशिश तो बनती है न ...!!!
जवाब देंहटाएंकुएँ से बाहर तो छलाँग लगाना ही पडेगा,सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंकब तक आखिर मेढ़क बन कर रहें
जवाब देंहटाएंआओ संग-संग
एक बड़ी छलांग लगा ही लें
पार कर गए तो
मंजिल
एक लाइन याद आई
आसमान में भी छेद हो सकता है
एक बार जमकर पत्थर तो उछालो यारों।
नैराश्य नहीं आशा की डोर थामे आगे बढ़ें .
मंजिल खुद ब खुद सामने होगी ..
बहुत उम्दा,,,प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंग,
कोशिश जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंहर कर्म के लिए ... सुन्दर संदेशात्मक रचना ...
रोचक भावनात्मक प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंपार कर गए तो
जवाब देंहटाएंमंजिल...risk to lena hi padega ...bahut sundar...pankti....
achchi rachana
जवाब देंहटाएं