अद्भुत रूप (5 ताँका)
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1.
नीले नभ से
झाँक रहा सूरज,
बदली खिली
भीगने को आतुर
धरा का कण-कण।
2.
झूमती नदी
बतियाती लहरें
बलखाती है
ज्यों नागिन हो कोई
अद्भुत रूप लिए।
3.
मैली कुचैली
रोज़-रोज़ है होती
पापों को धोती,
किसी को न रोकती
बेचारी नदी रोती।
4.
जल उठा है
फिर से एक बार
बेचारा चाँद
जाने क्यों चाँदनी है
रूठी अबकी बार।
5.
उठ गया जो
दाना-पानी उसका
उड़ गया वो,
भटके वन-वन
परिन्दों का जीवन।
-जेन्नी शबनम (1.4.2013)
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