अद्भुत रूप (5 ताँका)
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1.
नीले नभ से
झाँक रहा सूरज,
बदली खिली
भीगने को आतुर
धरा का कण-कण !
2.
झूमती नदी
बतियाती लहरें
बलखाती है
ज्यों नागिन हो कोई
अद्भुत रूप लिये !
3.
मैली कुचैली
रोज़-रोज़ है होती
पापों को धोती,
किसी को न रोकती
बिचारी नदी रोती !
4.
जल उठा है
फिर से एक बार
बेचारा चाँद
जाने क्यों चाँदनी है
रूठी अबकी बार !
5.
उठ गया जो
दाना-पानी उसका
उड़ गया वो,
भटके वन-वन
परिंदों का जीवन !
- जेन्नी शबनम (1. 4. 2013)
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