क़दम ताल
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कभी कंचन तो कभी बंजर
बन जाता है जीवन
कभी कोई आकार ले लेता है
तो कभी सदा के लिए
जल जाता है जीवन,
सोलह आना सही-
आँखें मूँद लेने से समय रुकता नहीं
न थम जाने से ठहरता है
निदान न पलायन में है
न समय के साथ चक्र बन जाने में है,
मुनासिब यही है
समय चलता रहे अपनी चाल
और हम चलें अपनी रफ़्तार
मिला कर समय से
क़दम ताल।
- जेन्नी शबनम (9. 9. 2013)
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