सोमवार, 9 सितंबर 2013

418. क़दम ताल

क़दम ताल

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समय की भट्टी में पककर
कभी कंचन तो कभी बंजर बन जाता है जीवन 
कभी कोई आकार ले लेता है 
तो कभी सदा के लिए जल जाता है जीवन। 

सोलह आना सही-
आँखें मूँद लेने से समय रुकता नहीं
न थम जाने से ठहरता है
निदान न पलायन में है 
न समय के साथ चक्र बन जाने में है। 

मुनासिब यही है    
समय चलता रहे अपनी चाल 
और हम चलें अपनी रफ़्तार  
मिलाकर समय से क़दम ताल

-जेन्नी शबनम (9.9.2013)
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