मंगलवार, 18 मार्च 2014

447. कुछ ख़त

कुछ ख़त

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मुद्दतों बाद तेरा ख़त मिला
जिसपर तुम्हारा पता नहीं
रोशनाई ज़रा-ज़रा पसरी हुई 
हर्फ़ ज़रा-ज़रा भटके हुए
तुमने प्यार लिखा, दर्द भी और मेरी रुसवाई भी 
तेरे ख़त में तेरे-मेरे दर्द पिन्हा हैं 
हयात के ज़ख़्म हैं, थोड़े तेरे थोड़े मेरे 
तेरे ख़त को हाथों में लिए 
तेरे लम्स को महसूस करते हुए  
मेरी पुरनम आँखें 
धुँधले हर्फों से तेरा अक्स तराशती हैं  
हयात का हिसाब लगाती हैं  
वज़ह ढूँढ़ती हैं  
क्यों कतरा-कतरा हँसी  
वक़्त की दीवारों में चुन दी गई  
क्यों सुकून को देश निकाला मिला 
आज भी यादों में बसी वो एक शब
तमाम यादों पर भारी है 
जब 
सोचे समझे फ़ैसले की तामील का आख़िरी पहर था  
एक को धरती दूजे को ध्रुवतारा बन जाना था 
ठीक उसी वक़्त 
वक़्त ने पंजा मारा 
देखो! वक़्त के नाखूनों में  
हमारे दिल के 
खुरचे हुए कच्चे मांस और ताज़ा लहू
अब भी जमे हुए हैं
सच है, कोई फ़र्क़ नहीं   
वक़्त और दैत्य में 
देखो! हमारे दरम्यान खड़ी वक़्त की दीवार 
सफ़ेद चूने से पुती हुई है
जिसपर हमारे किस्से खुदे हुए हैं 
और आज तुम्हारे इस ख़त को भी 
उस पर चस्पा हो जाना है
जिसके जवाब तुम्हें चाहिए ही नहीं 
मालूम है, कुछ ख़त  
जवाब पाने के लिए
लिखे भी नहीं जाते। 
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पिन्हा - छुपा हुआ
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- जेन्नी शबनम (18. 3. 2014)
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22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत हि सुंदर लेखन , आदरणीय को धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे ब्लॉग पर
    नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
    बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }

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  2. बिना जवाब की उम्मीद के लिखे गए ख़त सदा भीगे रहते हैं.....
    बहुत कोमल रचना...
    सादर
    अनु

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  3. लाजवाब नज़्म ... बहुत खूब!

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  4. हाँ,ऐसे ख़त जिन्हें जवाब का इंतज़ार न हो- सच तो यह है कि उनका जवाब होता ही नहीं!

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  5. कुछ ऐसे खतों के जवाब भी किसी के पास नहीं होते ... गहरे दर्द को लिखा है ..

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  6. कुछ ख़त
    जवाब पाने के लिए
    लिखे भी नहीं जाते ! ...

    sunder bhaav ...

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  7. बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ..

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  8. वाह ! बहुत खूबसूरत रचना।

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  9. बहुत सुंदर ,दिल को छूती अभिव्यक्ति...

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  10. एक भीगा सा खत.... उदासी भी कितनी खूबसूरती से बयां कर डाली
    वाह

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  11. कुछ ख़त
    जवाब पाने के लिए
    लिखे भी नहीं जाते !
    ...बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण रचना..

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  12. हमेशा की तार्ह आपकी यह कविता भीतार तक छू गई । लगता है प्रत्येक पंक्ति में दर्द पिन्हा है। ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी-
    आज भी
    यादों में बसी वो एक शब
    तमाम यादों पर भारी है
    जब
    सोचे समझे फैसले की तामील
    का आख़िरी पहर था
    एक को धरती
    दूजे को ध्रुवतारा बन जाना था
    ठीक उसी वक़्त
    वक़्त ने पंजा मारा

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
    --
    आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
    सादर

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  14. सुन्दर सरल शब्दों में गहरा एहसास की अभिव्यक्ति ...वक्त का पंजा सब पर पड़ता है !
    new post रात्रि (सांझ से सुबह )

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