समय-रथ
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1.
रोके न रुके
अपनी चाल चले
समय-रथ।
2.
न देख पीछे
सब अपने छूटे
यही है सच।
3.
नहीं फूटता
सदा भरा रहता
दुःखों का घट।
4.
स्वीकार किया
ज़िन्दगी से जो मिला
नहीं शिकवा।
- जेन्नी शबनम (24. 3. 2014)
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-सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 14/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड की ९५ वीं बरसी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति.. हायकू
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (14-04-2014) के "रस्में निभाने के लिए हैं" (चर्चा मंच-1582) पर भी होगी!
बैशाखी और अम्बेदकर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद प्रभावशाली !
जवाब देंहटाएंबधाई !
जिंदगी से जो मिलता है उसे स्वीकारना ही नियती है हमारी। पर दुख के साथ सुखों के कण क्षण बी आते हैं जो लाते हैं मुस्कुराहट होटों पर।
जवाब देंहटाएंउम्दा हाइकू ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंसभी हाइकु पसंद आए...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसमय को बाखूबी चंद शब्दों में बाँधा है ... लाजवाब ...
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