रंग
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मुझसे अब और न होगा
नहीं छुपा सकता
उसकी आँखों का सूनापन,
बिंदिया सकुचा कर बोली-
चुक गई मैं उसे सँवारकर
अब न होगा मुझसे
नहीं छुपा सकती
उसके चेहरे की उदासी,
होंठों की लाली तड़पकर बोली-
मेरा काम अब हुआ फ़िजूल
कितनी भी गहरी लगूँ
अब नहीं सजा पाती
उसके होंठों पर खिलती लाली,
सिन्दूर उदास मन से बोला-
मेरी निशानी हुई बेरंग
अब न होगा मुझसे
झूठ-मूठ का दिखावापन
नाता ही जब टूटा उसका
फिर रहा क्या औचित्य भला मेरा,
सुनो!
बिन्दी-काजल-लिपिस्टिक लाल
सुनो!
बिन्दी-काजल-लिपिस्टिक लाल
आओ चल चलें हम
अपने-अपने रंग लेकर उसके पास
अपने-अपने रंग लेकर उसके पास
जहाँ हम सच्चे-सच्चे जीएँ
जहाँ हमारे रंग गहरे-गहरे चढ़े
खिल जाएँ हम भी जी के जहाँ
जहाँ हमारे रंग गहरे-गहरे चढ़े
खिल जाएँ हम भी जी के जहाँ
विफल न हो हमारे प्रयास जहाँ
करनी न पड़े हमें कोई चाल वहाँ,
हम रंग हैं
हम सजा सकते हैं
पर रंगहीन जीवन में नहीं भर सकते
अपने रंग।
करनी न पड़े हमें कोई चाल वहाँ,
हम रंग हैं
हम सजा सकते हैं
पर रंगहीन जीवन में नहीं भर सकते
अपने रंग।
- जेन्नी शबनम (11. 10. 2014)
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बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 12/10/2014 को "अनुवादित मन” चर्चा मंच:1764 पर.
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसाजन नखलिस्तान
आपने बहुत रहिस्यमय पंक्तियाँ लिख हैँ।
जवाब देंहटाएंआभार
आज मैँ भी अपने मन की आवाज शब्दो मेँ बाँधने का प्रयास किया प्लिज यहाँ आकर अपनी राय देकर मेरा होसला बढाये
सुंदर रचना..हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहीं … सच में उदासीन चेहरे पर कुछ भी नहीं भाता … सुन्दर प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत रचना
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आप आमंत्रित हैं :)
Bahut sunder rachna !!!
जवाब देंहटाएंभाव प्रवण रचना जो दिल को छू गई। मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है।सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. शबनम जी, आपकी इस गहन अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंआखिर कार रंग भी हार जाते हैं ... उदासियाँ या उम्र कहाँ छुप पाती हैं ... गहरी पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हाईकू बने हैं |
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