उफ़! माया
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"मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है...
मेरा वो सामान लौटा दो...!"
'इजाज़त' की 'माया',
उफ़ माया!
तुम्हारा सामान लौटा कि नहीं, नहीं मालूम
मगर तुम लौट गई, इतना मालूम है
पर मैं?
मेरा तो सारा सामान...!
क्या-क्या कहूँ लौटाने
मेरा वक़्त, मेरे वक़्त की उम्र
वक़्त के घाव, वक़्त के मलहम
दिन-रात की आशनाई
भोर की लालिमा, साँझ का सूनापन
शब के अँधियारे, दिन के उजाले
रोज़ की इबादत, सपनों की हकीकत
हवा की नरमी, धूप की गरमी
साँसों की कम्पन, अधरों के चुम्बन
होंठों की मुस्कान, दिल नादान
सुख-दुःख, नेह-देह...!
सब तुम्हारा, सब के सब तुम्हारा
अपना सब तो उस एक घड़ी सौंप दिया
जब तुम्हें ख़ुदा माना
इनकी वापसी...?
फिर मैं कहाँ? क्या वहाँ?
जहाँ तुम हो माया?
- जेन्नी शबनम (22. 1. 2014)
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