बहुरुपिया
(5 ताँका)
(5 ताँका)
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1.
हवाई यात्राकरता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !
2.
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !
3.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !
4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !
5.
साथ हमारा
धरा-नभ का नाता
मिलते नहीं
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !
- जेन्नी शबनम (16. 4. 2014)