शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

452. बहुरुपिया (5 ताँका)

बहुरुपिया 
(5 ताँका)

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1.
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !

2.
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !

3.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !

4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !

5.
साथ हमारा 
धरा-नभ का नाता  
मिलते नहीं  
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !

- जेन्नी शबनम (16. 4. 2014)

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20 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना रविवार 27 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. सभी ताँके बहुत बढिया हैं..

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-04-2014) को ""मन की बात" (चर्चा मंच-1594) (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कितने बदल गए हम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. सुंदर तांके......अंतिम बहुत भाया।

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  6. सारी क्षणिकाएँ एक से बढकर एक हैं... सबकी अलग-अलग विशेषता है, लेकिन अंतिम क्षणिका ने हृदय को स्पर्श किया!!

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..... एक से बढ़ कर एक तांका....

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  8. sunder abhivyakti kam shabdon mein gehre bhaav

    shubhkamnayen

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  9. गहन अभिव्यक्ति...अति सुन्दर...खूबसूरत कथ्य...

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  10. सभी ताँका गहन भाव लिए हुए है.

    कभी न जला
    अंतस् बसा रावण
    बड़ा कठोर
    हर साल जलाया
    झुलस भी न पाया !

    कहीं डँसे न
    मानव केंचुल में
    छुपे हैं नाग
    मीठी बोली बोल के
    करें विष वमन !

    ये दोनों ताँका तो एकदम लाजवाब हैं– बधाई

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  11. कभी न जला
    अंतस् बसा रावण
    बड़ा कठोर
    हर साल जलाया
    झुलस भी न पाया ..

    सच कहा .. बहुत कठिन होता है अंतस के रावण को हमेशा के लिए जलाना ... खुद को मारना आसान कहाँ ...

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  12. कभी न जला
    अंतस् बसा रावण
    बड़ा कठोर
    हर साल जलाया
    झुलस भी न पाया

    समाज की हकीकत को प्रतिबिम्बित करती पंक्तियां...

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  13. बहुत ही सुन्दर सारगर्भित क्षणिकाएं .. सुन्दर सृजन आदरणीया ...

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  14. यही तो बात है मन भरमा जाता है -असलियत कुछ और !

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  15. सभी क्षणिकायें बहुत गहरे अर्थ लिए ...

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