कैसी ये तक़दीर
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बित्ते भर का जीवन कैसी ये तक़दीर
छोटी-छोटी ऊँगलियों में चुभती है हुनर की पीर
बेपरवाह दुनिया में सब ग़रीब सब अमीर
आख़िर हारी आज़ादी बँध गई मन में ज़ंजीर
कहाँ कौन देखे दुनिया मर गए सबके ज़मीर।
आख़िर हारी आज़ादी बँध गई मन में ज़ंजीर
कहाँ कौन देखे दुनिया मर गए सबके ज़मीर।
- जेन्नी शबनम (1. 5. 2016)
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बहुत भावपूर्ण रचना । जी हाँ जिन्दगी छोटी सी होती है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआपने लिखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 03/05/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 291 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
यतार्थ
जवाब देंहटाएंachchaa likha badhai
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दुनिया ऐसी है .... रूखी ... मृत ....
जवाब देंहटाएंbohat khoob.. lots to read here.. laut ke aana padega :)
जवाब देंहटाएं(www.kaunquest.com)
सही कहा
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