सुख-दुःख जुटाया है
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तिनका-तिनका जोड़कर सुख-दुःख जुटाया है
सुख कभी-कभी झाँककर
अपने होने का एहसास कराता है
दुःख सोचता है कभी तो मैं भूलूँ उसे
ज़रा देर वो आराम करे
मेरे मायके वाली टिन की पेटी में।
मेरे मायके वाली टिन की पेटी में।
- जेन्नी शबनम (24. 4. 2017)
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 26 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंNICE
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (27-04-2017) को पाँच लिंकों का आनन्द "अतिथि चर्चा-अंक-650" पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना चर्चाकार का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कुछ यादें बहुत ही गहरीं होती हैं ,फिर चाहे दुःख हो अथवा सुख ,सुन्दर रचना ! आदरणीय ,आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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