हिसाब-किताब के रिश्ते
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दिल की बातों में ये हिसाब-किताब के रिश्ते
परखते रहे कसौटी पर बेकाम के रिश्ते।
वक़्त के छलावे में जो ज़िन्दगी ने चाह की
कतरा-कतरा बिखर गए ये मखमल-से रिश्ते।
दर्द की दीवारों पे हसीन लम्हे टँके थे
गुलाब संग काँटों के ये बेमेल-से रिश्ते।
लड़खड़ाकर गिरते फिर थम-थम के उठते रहे
जैसे समंदर की लहरें व साहिल के रिश्ते।
नाम की ख़्वाहिश ने जाने ये क्या कराया
गुमनाम सही पर क्यों बदनाम हुए ये रिश्ते।
चाँदी के तारों से सिले जज़्बात के रिश्ते
सुबह की ओस व आसमाँ के आँसू के रिश्ते।
किराए के मकाँ में रहके घर को हैं तरसे
अपनों की आस में 'शब' ने ही निभाए रिश्ते।
- जेन्नी शबनम (8. 9. 2017)
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डॉ॰ वर्गीज़ कुरियन - 'फादर ऑफ़ द वाइट रेवोलुशन' “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-09-2017) को "चमन का सिंगार करना चाहिए" (चर्चा अंक 2723) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं......
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंरिश्तों का इतिहास और रिश्तों की आड़ी तिरछी रेखाओं में घूमती रचना ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंनाम की ख्वाहिश ने जाने क्या कराया
जवाब देंहटाएंगुमनाम सही पर क्यों बदनाम हुये ये रिश्ते
वाहवाह...
बहुत सुन्दर..
वाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंवाह ! लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीय ।
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