गुरुवार, 8 मार्च 2018

568. पायदान (क्षणिका)

पायदान  

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सीढ़ी की पहली पायदान हूँ मैं  
जिसपर चढ़कर समय ने छलाँग मारी  
और चढ़ गया आसमान पर  
मैं ठिठककर तब से खड़ी  
काल-चक्र को बदलते देख रही हूँ,  
न जिरह न कोई बात कहना चाहती हूँ  
न हक़ की, न ईमान की, न तब की, न अब की।  
शायद यही प्रारब्ध है मेरा  
मैं, सीढ़ी की पहली पायदान।  

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2018)  
(महिला दिवस)
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-03-2017) को "अगर न होंगी नारियाँ, नहीं चलेगा वंश" (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. गहन भाव लिए अनुपम सृजन

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  4. वाह !!! बहुत सुन्दर लाजवाब रचना

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  5. मन का अनकहा सच
    बहुत सुंदर सृजन
    सादर

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  6. स्त्री को बचपन से ही त्याग का पाठ पढ़ाया गया है ना, स्वयं पायदान बनकर दूसरों को आगे बढ़ाने, ऊपर चढ़ाने में ही वह अपने जीवन की सार्थकता मान बैठती है.... ना जाने कब तक....

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