रविवार, 14 अक्टूबर 2018

590. वर्षा (5 ताँका)

वर्षा (ताँका)   

*******   

1.   
वर्षा की बूँदें   
उछलती-गिरती   
ठौर न पाती   
मौसम बरसाती   
माटी को तलाशती।   

2.   
ओ रे बदरा   
इतना क्यों बरसे   
सब डरते   
अन्न-पानी दूभर   
मन रोए जीभर।   

3.   
मेघ दानव   
निगल गया खेत,   
आया अकाल   
लहू से लथपथ   
खेत व खलिहान।   

4.   
बरखा रानी   
झम-झम बरसी   
मस्ती में गाती   
खिल उठा है मन   
नाचता उपवन।   

5.   
प्यासी धरती   
अमृत है चखती   
सोंधी-सी खूश्बू   
मन को लुभाती   
बरखा तू है रानी।   

- जेन्नी शबनम (9. 9. 2018)   

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9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १५ अक्टूबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १५ अक्टूबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  4. आदरणीय जेन्नी जी--- सभी काव्यात्मक पंक्तियाँ बहुत संदर सारगर्भित हैं | सादर --

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  5. आदरणीय जेन्नी जी--- सभी काव्यात्मक पंक्तियाँ बहुत संदर सारगर्भित हैं | सादर --

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  6. आदरणीय जेन्नी जी--- सभी काव्यात्मक पंक्तियाँ बहुत संदर सारगर्भित हैं | सादर

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  7. बहुत सुन्दर जेन्नी शबनम जी. बरखा - कुछ उदासी, कुछ उमंग, आशा-निराशा एक संग.

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  8. वर्षा के मनमोहक रूप प्रस्तुत करते सुन्दर ताँका.

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