मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

605. बसन्त (क्षणिका)

बसन्त   

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मेरा जीवन मेरा बंधु   
फिर भी निभ नहीं पाता बंधुत्व   
किसकी चाकरी करता नित दिन   
छुट गया मेरा निजत्व   
आस उल्लास दोनों बिछुड़े   
हाय! जीवन का ये कैसा बसंत।  

- जेन्नी शबनम (12. 2. 2019)
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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रणय दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. कुछ पंक्तियों में आपने कितना कुछ लिख डाला। बसंत भी गमगीन है। शुभकामनाएं आदरणीय ।

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