सोमवार, 1 जुलाई 2019

617. सरमाया (क्षणिका)

सरमाया   

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ये कैसा दौर आया है, पहर-पहर भरमाया है   
कुछ माँगूँ तो ईमान मरे, न माँगूँ तो ख़्वाब मरे   
क़िस्मत से धक्का-मुक्की, पोर-पोर घबराया है   
जद्दोज़हद में युग बीते, यही मेरा सरमाया है।   

- जेन्नी शबनम (1. 7. 2019)   
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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. मांगू तो ईमान मरे, न माँगू तो ख्वाब मरे.....अरे जेन्नी जी आपने तो मार ही डाला!! बहुत उन्दा।

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