बसन्त
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मेरा जीवन मेरा बंधु
फिर भी निभ नहीं पाता बंधुत्व
किसकी चाकरी करता नित दिन
छुट गया मेरा निजत्व
आस उल्लास दोनों बिछुड़े
हाय! जीवन का ये कैसा बसंत।
- जेन्नी शबनम (12. 2. 2019)
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