ख़ाली हाथ जाना है
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ख़ाली हाथ हम आए थे
ख़ाली हाथ ही जाना है।
तन्हा-तन्हा रातें गुज़री
तन्हा दिन भी बिताना है।
समझ-समझ के समझे क्यों
समझ से दिल कब माना है।
क़तरा-क़तरा जीवन छूटा
क़तरा-क़तरा सब पाना है।
बूँद-बूँद बिखरा लहू
बूँद-बूँद मिट आना है।
झम-झम बरसी आँखें उसकी
झम-झम जल ये चखाना है।
'शब' को याद मत करो तुम
उसका गया ज़माना है।
- जेन्नी शबनम (16. 6. 2020)
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को "उलझा माँझा" (चर्चा अंक-3735) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंख़ाली हाथ आना और जाना तो तय है पर जब तक नहि जाते तब तक बहुत कुछ रखना तो पड़ता है ...
बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन आदरणीय दीदी .
जवाब देंहटाएंसमझ समझ के समझे कब , समझ के दिल कब माना है ..वाह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअति उत्तम लाजवाब ,प्यारी सी रचना
जवाब देंहटाएंशब नम का कभी जाता नहीं ज़माना,
जवाब देंहटाएंउसे तो हर साँझ के साथ है आना।
'शब' को याद मत करो तुम
जवाब देंहटाएंउसका गया जमाना है !
- बढ़िया प्रस्तुति
'शब' को याद मत करो तुम
जवाब देंहटाएंउसका गया जमाना है !
- बढ़िया प्रस्तुति
उम्दा सृजन
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