मंगलवार, 16 जून 2020

672. ख़ाली हाथ जाना है (तुकांत)

ख़ाली हाथ जाना है 

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ख़ाली हाथ हम आए थे   
ख़ाली हाथ ही जाना है।   

तन्हा-तन्हा रातें गुज़री   
तन्हा दिन भी बिताना है।   

समझ-समझ के समझे क्यों   
समझ से दिल कब माना है।   

क़तरा-क़तरा जीवन छूटा   
क़तरा-क़तरा सब पाना है।   

बूँद-बूँद बिखरा लहू   
बूँद-बूँद मिट आना है।   

झम-झम बरसी आँखें उसकी   
झम-झम जल ये चखाना है।   

'शब' को याद मत करो तुम   
उसका गया ज़माना है।   

- जेन्नी शबनम (16. 6. 2020)
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13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को   "उलझा माँझा"    (चर्चा अंक-3735)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. बहुत ख़ूब ...
    ख़ाली हाथ आना और जाना तो तय है पर जब तक नहि जाते तब तक बहुत कुछ रखना तो पड़ता है ...

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  3. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय दीदी .

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  4. समझ समझ के समझे कब , समझ के दिल कब माना है ..वाह

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  5. अति उत्तम लाजवाब ,प्यारी सी रचना

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  6. शब नम का कभी जाता नहीं ज़माना,
    उसे तो हर साँझ के साथ है आना।

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  7. 'शब' को याद मत करो तुम
    उसका गया जमाना है !

    - बढ़िया प्रस्तुति

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  8. 'शब' को याद मत करो तुम
    उसका गया जमाना है !

    - बढ़िया प्रस्तुति

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