सँवरने नहीं देती
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दर्द की ज़ुबान मीठी है बहकने नहीं देती
लहू में डूबी है ज़िन्दगी सँवरने नहीं देती।
इक रूह है जो जिस्म में तड़पती रहती है
कमबख्त साँस हैं जो निकलने नहीं देती।
मसला तो हल न हुआ बस चलते ही रहे
थक गए पर ये ज़िन्दगी थमने नहीं देती।
वक़्त के ताखे पे रखी रही उम्र की बाती
क़िस्मत गुनहगार ज़िन्दगी जलने नहीं देती।
अब रूसवाई क्या और भला किससे करना
चाक-चाक दिल मगर आँसू बहने नहीं देती।
मेरे वास्ते अपनों की भीड़ ने कजा को पुकारा
शब से रूठी है कजा उसको मरने नहीं देती।
- जेन्नी शबनम (1. 7. 2020)
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंगजब, बहुत खूब
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जवाब देंहटाएंदर्द की ज़ुबान मीठी है बहकने नहीं देती
लहू में डूबी है ज़िन्दगी सँवरने नहीं देती !
इक रूह है जो जिस्म में तड़पती रहती है
कमबख्त साँस हैं जो निकलने नहीं देती !
बहुत खूब लिखा जेन्नी जी 👌👌👌👌हार्दिक शुभकामनायें🌹🌹🙏🙏🌹🌹
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 02 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(03-07-2020) को
"चाहे आक-अकौआ कह दो,चाहे नाम मदार धरो" (चर्चा अंक-3751) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
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"मीना भारद्वाज"
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंवाह! सुंदर गजल।
जवाब देंहटाएंवाह ,बेहद खूबसूरत ,सभी शेर लाजवाब ,बधाई हो आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंऐसी ही है ज़िन्दगी -किसी का बस नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह!बिखरी-सी है ज़िंदगी ...सँवरने नहीं देते .
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