सँवरने नहीं देती
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दर्द की ज़ुबान मीठी है बहकने नहीं देती
लहू में डूबी है ज़िन्दगी सँवरने नहीं देती।
इक रूह है जो जिस्म में तड़पती रहती है
कमबख्त साँस हैं जो निकलने नहीं देती।
मसला तो हल न हुआ बस चलते ही रहे
थक गए पर ये ज़िन्दगी थमने नहीं देती।
वक़्त के ताखे पे रखी रही उम्र की बाती
क़िस्मत गुनहगार ज़िन्दगी जलने नहीं देती।
अब रूसवाई क्या और भला किससे करना
चाक-चाक दिल मगर आँसू बहने नहीं देती।
मेरे वास्ते अपनों की भीड़ ने कजा को पुकारा
शब से रूठी है कजा उसको मरने नहीं देती।
- जेन्नी शबनम (1. 7. 2020)
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