भटकना
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सारा दिन भटकती हूँ
हर एक चेहरे में अपनों को तलाशती हूँ
अंतत: हार जाती हूँ
दिन थक जाता है रात उदास हो जाती है
हर दूसरे दिन फिर से वही तलाश, वही थकान
वही उदासी, वही भटकाव
अंततः कहीं कोई नहीं मिलता
समझ में आ गया, कोई दूसरा अपना नहीं होता
अपना आपको ख़ुद होना होता है
और यही जीवन है।
- जेन्नी शबनम (23. 11. 2020)
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