भटकना
*******
सारा दिन भटकती हूँ
हर एक चेहरे में अपनों को तलाशती हूँ
अंतत: हार जाती हूँ
दिन थक जाता है रात उदास हो जाती है
हर दूसरे दिन फिर से वही तलाश, वही थकान
वही उदासी, वही भटकाव
अंततः कहीं कोई नहीं मिलता
समझ में आ गया, कोई दूसरा अपना नहीं होता
अपना आपको ख़ुद होना होता है
और यही जीवन है।
- जेन्नी शबनम (23. 11. 2020)
_______________________
वाह।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा मंगलवार ( 24-11-2020) को "विश्वास, प्रेम, साहस हैं जीवन के साथी मेरे ।" (चर्चा अंक- 3895) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
जीवन का यथार्थ लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंसादर नमन
अपना आप को खुद होना होता है
और यही जीवन है!
वाह!!!
समझ में अब आ गया है
जवाब देंहटाएंकोई दूसरा अपना नहीं होता
अपना आप को खुद होना होता है
और यही जीवन है! ...बहुत ख़ूब वर्णित किया है जीवन को..सटीक..।
अपना आप को खुद होना पड़ता है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक.. जीवन का कटु सत्य...
वाह!!!
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंसत्य कहा ।
जवाब देंहटाएंहर एक चेहरे में, अपनों को तलाशती हूँ
जवाब देंहटाएंअंतत: हार जाती हूँ
दिन थक जाता है, रात उदास हो जाती है! ...बहुत ही सुंदर दी।
सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति...पर इतनी निराशा ठीक नहीं|
जवाब देंहटाएं