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मेरे अस्तित्व का प्रश्न है-
मैं पत्थर बन चुकी या पानी हूँ?
पत्थरों से घिरी, मैं जीवन भूल चुकी हूँ
शायद पत्थर बन चुकी हूँ
फिर हर पीड़ा
मुझे रुलाती क्यों है?
हर बार पत्थरों को धकेलकर
जिधर राह मिले, बह जाती हूँ
शायद पानी बन चुकी हूँ
फिर अपनी प्यास से तड़पती क्यों हूँ?
हर बार, बार-बार
पत्थर और पानी में बदलती मैं
नहीं जानती, मैं कौन हूँ।
-जेन्नी शबनम (12.12.2020)
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