ओ पापा!
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ओ पापा!
तुम गए
साथ ले गए
मेरा आत्मबल
और छोड़ गए मेरे लिए
कँटीले-पथरीले रास्ते
जिसपर चलकर
मेरा पाँव ही नहीं मन भी
छिलता रहा।
तुम्हारे बिना
जीवन की राहें बहुत कठिन रहीं
गिर-गिरकर ही सँभलना सीखा
कुछ पाया बहुत खोया
जीवन निरर्थक चलता रहा।
तुम्हारी यादें
और चिन्तन-धारा को
मन में संचितकर
अब भरना है स्वयं में आत्मविश्वास
और उतरना है
जीवन-संग्राम में।
भले अब
जीवन के अवसान पर हूँ
पर जब तक साँस तब तक आस।
- जेन्नी शबनम (20. 6. 2021)
(पितृ दिवस)
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Bilkul sach hai! Ekdum!
जवाब देंहटाएंपिता को समर्पित सुंदर भावों की दीपांजलि। सादर नमन।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह बहुत खूब जेन्नी जी । बहुत लिखे जाने वाला सब्जेक्ट । बहुत ही उम्दा बधाई !!
जवाब देंहटाएंसादर
पिता के बिना जीवन आसान नहीं होता।
जवाब देंहटाएंलोगों के लिए जो राहें सुगम भी हो जिनके पिता नहीं तो जैसे राहों के काँटे उसी के पैर को छलनी करने के लिए उग आते हैं...। पर धीरे उन्हीं काँटों पर चलने की आदत बन जाती है...।
बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन।
ह्रदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ण
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