गुरुवार, 5 मई 2022

742. मन (मन पर 20 हाइकु)

मन  

(मन पर 20 हाइकु) 


1. 
जीवन-मृत्यु   
निरन्तर का खेल   
मन हो, न हो।   

2. 
डटके खड़ा   
गुलमोहर मन   
कोई मौसम।   

3. 
काटता मन   
समय है कुल्हाड़ी   
देता है दुःख।   

4. 
काश! रहता   
वन-सा हरा-भरा   
मन का बाग़।   

5. 
मन हाँकता   
धीमी - मध्यम - तेज़   
साँसों की गाड़ी।   

6. 
मन का रथ   
अविराम चलता   
कँटीला पथ।   

7. 
मन अभागा   
समय है गँवाया   
तब समझा।   

8. 
मन क्या करे?   
पछतावा बहुत   
जीवन ख़त्म।   

9. 
जटिल बड़ा   
साँसों का तानाबाना   
मन है हारा।   

10. 
मन का रोगी   
भेद न समझता   
रोता-रूलाता।   

11. 
हँसे या रोए   
नियति की नज़र   
मन न बचे।   

12. 
पास या फेल   
ज़िन्दगी इम्तिहान   
मन का खेल।   

13. 
मन की कथा   
समय पे बाँचती   
रिश्ते जाँचती।   

14. 
न खोलो मन,   
पराए पाते सुख   
सुन के दुःख।   

15. 
कठोर वाणी   
कृपाण-सी चुभती,   
मन घायल।   

16. 
लौ उम्मीद की   
मन जलता दीया   
जीवन-दीप्त।   

17. 
भौचक मन   
हतप्रभ देखता   
दृश्य के पार।   

18. 
मन का पंछी   
लालायित देखता   
उड़ता पंछी।   

19. 
मन में पीर   
चेहरे पे मुस्कान   
जीवन बीता।   

20. 
अकेला मन   
ख़ुद से बतियाता   
खोलता मन।   

- जेन्नी शबनम (5. 5. 2022)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे एक से बढ़कर हायकू

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०७-०५-२०२२ ) को
    'सूरज के तेवर कड़े'(चर्चा अंक-४४२२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. मन के कई रंग रूप दिखे इन हाइकु में! ये वाला ज़्यादा पसंद आया ...  
    न खोलो मन,   
    पराए पाते सुख   
    सुन के दुःख। 


    सुन के दुःख
    जो सुख हैं पाते
    हैं वो पराए? 
    बचे फिर अपने 
    पता नहीं कौन?
    मन है मौन! 

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  4. वाह!!!
    लाजवाब हायकु
    मन हो न हो
    एक से बढ़कर एक।

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  5. मन को बड़ी गहराई से समझा है आपने। तभी तो ऐसे हाइकुओं के माध्यम से गागर में सागर जैसी अभिव्यक्तियां फूटी हैं - आपके मन से।

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