ज़िन्दगी नहीं है
*******
बहुत कुछ था जो अब नहीं है
कुछ है पर ज़िन्दगी नहीं है।
कश्मकश में उलझकर क्या कहें
जो कुछ भी था अब नहीं है।
हयात-ए-सफ़र पर चर्चा क्या
कहने को बचा अब कुछ नहीं है।
फ़िसलते नातों का ये दौर
ख़तम होता अब क्यों नहीं है।
रह-रहकर पुकारता है मन
सब है पर अपना कोई नहीं है।
'शब' की बातें कच्ची-पक्की
ज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है।
- जेन्नी शबनम (11. 11. 22)
____________________
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-11-22} को "पंख मेरे मत कतरो"(चर्चा अंक 4610) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
क्षमा चाहती हूँ रविवार (13 -11-22)
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है जेन्नी जी जिंदगी का फलसफा ही बयां कर दिया आपने।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
जिन्दगीनामे को बहुत ही सरल शब्दों मव व्यक्त किया है आपने, शबनम दी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंशब' की बातें कच्ची-पक्की
जवाब देंहटाएंज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है।
वाह!!!
बहुत सटीक एवं सार्थक ।