रविवार, 30 जून 2024

778. ज़िन्दगी बौनी (10 ताँका)

ज़िन्दगी बौनी (10 ताँका)

*** 


1.
दहलीज़ पे
बैठा राह रोकके 
औघड़ चाँद 
न आ सका वापस 
मेरा दर्द या प्रेम।

2.
ज़िन्दगी बौनी
आकाश पे मंज़िल
पहुँचे कैसे?
चारों खाने चित है
मन मेरा मृत है।

3.
गहन रात्रि
सुनसान डगर
किधर चला?
मेरा मन ठहर
थम जा तू इधर।

4.
तुम्हारा स्पर्श
मानो जादू की छड़ी
छूकर आई
बादलों को प्यार से 
ऐसी ठण्डक पाई।

5.
ग़ायब हुए
सिरहाने से ख़्वाब
छुपाया तो था
काल की नज़रों से,
चोरी हो गए ख़्वाब 

6.
कोई न सगा 
सब देते हैं दग़ा
नहीं भरोसा,
अपना या पराया
दिल मत लगाना। 

7.
मैंने कुतरे
अपने बुने ख़्वाब
होके लाचार,   
पल-पल मरके
मैंने रचे थे ख़्वाब।  
   
8.
मैं गुम हुई
मन की कंदराएँ
बेवफ़ा हुईं,
कोई तो होगी युक्ति   
जो मुझे मिले मुक्ति।  

9. 
मेरे सपने 
आसमाँ में जा छुपे 
मैं कैसे ढूँढूँ? 
पाखी से पंख लिए  
सूर्य ने है जलाए।  

10. 
मेरी तिजोरी
जिसे छुपाया वर्षों
हो गई चोरी
जहाँ ख़ुशियाँ मेरी
छुपी रही बरसों।

-जेन्नी शबनम (20.6.24)
_________________

3 टिप्‍पणियां: