सोमवार, 20 सितंबर 2010

175. प्रिय है मुझे मेरा पागलपन / priye hai mujhe mera pagalpan

प्रिय है मुझे मेरा पागलपन

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क़ुदरत की बैसाखी मिली
मैं जी सकूँ ये क़िस्मत मेरी
इसीलिए ख़ुद से ज़्यादा 
प्रिय है मुझे मेरा पागलपन 
कुछ भी कर लूँ, माफ़ न करो
नहीं स्वीकार, कोई एहसान मुझे 
सच कहते हो, मैं पागल हूँ
होना भी नहीं मुझे, तुम्हारी दुनिया जैसा
मैं हूँ भली, अपने पागलपन के साथ 
कहते हो तुम
छोड़ आओगे मुझको, किसी पागलखाने में
आज अब राज़ी हूँ
इस दुनिया को छोड़, उस दुनिया में जाने को,
चलो पहुँचा दो मुझे
प्रिय है मुझे मेरा पागलपन!

- जेन्नी शबनम (7. 9. 2010)
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priye hai mujhe mera pagalpan

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qudrat ki baisaakhi mili
main ji sakun ye qismat meri,
isiliye khud se jyaada
priye hai mujhe mera pagalpan.
kuchh bhi kar loon, maaf na karo
nahin svikaar, koi yehsaan mujhe
sach kahte ho, main pagaal hun
hona bhi nahin mujhe, tumhaari duniya jaisa
main hun bhali, apne pagalpan ke saath.
kahte ho tum
chhod aaoge mujhko, kisi pagalkhaane mein
aaj ab raazi hun
is duniya ko chhod, us duniya mein jaane ko,
chalo pahuncha do mujhe
priye hai mujhe mera pagalpan!

- Jenny Shabnam (7. 9. 2010)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. bahut khub...
    behtareen rachna...
    ----------------------------------
    मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
    जरूर आएँ..

    जवाब देंहटाएं
  2. रचना बाँच सुवासित मन हो!
    पागलपन में भोलापन हो।
    ऐसा पागलपन अच्छा है!

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  3. पूछना नहीं कितनी पागल, कितनी पागल ,
    आकाश में जितने बादल, उतनी पागल ....

    दर-ब्-दर भटकती रही, जलती रही,
    अरे - पाया खुद में ही , एक पागल …by Preeti

    yeh pagalpan hi to khud ka satya hai, jine ki wajah hai...!

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  4. सच कहा आपने ये पागलपन भगवान से मिलाने के लिए काफी है. सुंदर अभिव्यक्ति.

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  5. दर्द की अभिव्यक्ति ...यह कहना कि यह पागलपन है ...कहीं मन को आरड कर जाता है ..आच्छी प्रस्तुति

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  6. Jenni ji
    bilkul sahi kaha aapne. Es dunia ke pagal bhind me kho jane se ho sakta ho vo dunia achchhi ho

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  7. बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है!
    --

    यह सूचना इस लिए दे रहा हूँ क्योंकि चर्चा मंच पत्रिका के आज के अंक में आपकी रचना ली गई है!
    http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/2010/09/priye-hai-mujhe-mera-pagalpan.html

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  8. काश ये पागलपन एक बार मिल जाये फिर और क्या चाहिये……………एक् बहुत ही गहन और बेहतरीन कविता।

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  9. वैसे तो ये दुनिया भी एक पागल खाना ही है .... पर अपने आप के पागल पन में रहना अच्छा रहता है ....

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  10. प्रिय है मुझे, मेरा पागलपन...
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    कुदरत की
    बैसाखी मिली
    मैं जी सकूँ
    ये किस्मत मेरी,
    bahut sahi .....

    ख़ुद से ज्यादा
    प्रिय है मुझे
    मेरा पागलपन !
    bahut khub ...

    कुछ भी कर लूँ
    माफ़ न करो,
    नहीं स्वीकार
    कोई एहसान मुझे !

    apane astitv ka sangharsh ...

    सच कहते हो
    मैं पागल हूँ,
    haa ..sahi hai

    पर होना भी
    नहीं मुझे
    तुम्हारी दुनिया जैसा,

    sach me yah duniya bhi
    ek vykti ki tarah
    apani soch rakhati hai

    us soch ki soch ka
    kaunsa svtantr ansh hae ...?
    ham
    aap tum
    kise pata ....

    मैं हूँ भली अपने
    पागलपन के साथ !

    thik kaha aapne
    apani pahchaan to honi hi
    chahiuye
    कहते हो तुम
    चलो छोड़ आयें
    मुझको किसी
    पागलखाने में,
    thik likha hai aapne ..
    par yah kah jaate hai log

    आज अब राज़ी हूँ
    इस दुनिया को छोड़
    उस दुनिया में जाने को,

    apane pagal pan ke liye
    sab kuchh chhodane ki baat

    चलो पहुंचा दो मुझे
    प्रिय है मुझे,
    मेरा पागलपन!

    bahut sundar ..bahut khub ..
    ek ek shbdo me anubhut sach chhipa hai

    kya baat hai ..
    drd ..drd hi

    __ जेन्नी शबनम __ ७. ०९. २०१०

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