गुरुवार, 4 अगस्त 2016

522. चलो चलते हैं

चलो चलते हैं

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सुनो साथी!  
चलो चलते हैं नदी के किनारे ठण्डी रेत पर
पाँव को ज़रा ताज़गी दे वहीं ज़रा सुस्ताएँगे
अपने-अपने हिस्से का अबोला दर्द रेत से बाँटेंगे  
न तुम कुछ कहना न हम कुछ पूछेंगे  
अपने-अपने मन की गिरह ज़रा-सी खोलेंगे।
 
मन की गाथा  
जो हम रचते हैं काग़ज़ के सीने पर  
सारी-की-सारी पोथियाँ वहीं बहा आएँगे  
अँजुरी में जल ले संकल्प दोहराएँगे  
और अपने-अपने रास्ते पर बढ़ जाएँगे। 
  
सुनो साथी!  
चलते हैं नदी के किनारे  
ठण्डी रेत पर वहीं ज़रा सुस्ताएँगे    

-जेन्नी शबनम (4.8.2016)  
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