गुरुवार, 7 नवंबर 2019

637. महज़ नाम (क्षणिका)

महज़ नाम 

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सोचती थी, किसी के आँचल में हर वेदना मिट जाती है   
पर भाव बदल जाते हैं, तो संवेदना मिट जाती है   
न किसी प्यार का, न अधिकार का नाम है   
माँ संबंध नहीं, महज़ पुकार का एक नाम है   
तासीर खो चुका है, बेकार का नाम है।     

- जेन्नी शबनम (7. 11. 2019)   
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4 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (०९ -११ -२०१९ ) को "आज सुखद संयोग" (चर्चा अंक-३५१४) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  3. हां कुछ ऐसा ही हो रहा है अब बहुत कुछ कहती हुई आपकी शानदार रचना

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