बुधवार, 5 मई 2010

140. मेरी यायावरी क्यों / meri yaayaavari kyon

मेरी यायावरी क्यों

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तुम्हारी गंध की तलाश में भटकती रही
रेत के समंदर में पहरों तलाशती रही
कभी आसमान तक गई
कभी धरती से पूछी
कभी चाँद तारों के आगे रोई
कभी सूरज के आगे गिड़गिड़ाई
कभी हवा से दुखड़ा सुनाई
कभी बरखा से पूछी,
बताओ न तुम कहाँ हो?

युगों से है मेरी ये यायावरी
अजब अबूझ पहेली ज़िन्दगी
जाने कहाँ-कहाँ मैं बौराई फिरती
हो मुझमें समाए ज्यों गंध कस्तूरी,
जाने कैसी है ये परिणति
इस जीवन की भी है यही नियति!

मेरे ही हिस्से में
आख़िर क्यों?
मेरी यायावरी क्यों?
बताओ न!

- जेन्नी शबनम (5. 5. 2010)
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meri yaayaavari kyon

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tumhaari gandh ki talaash mein bhatakti rahi
ret ke samandar mein pahron talaashti rahi
kabhi aasamaan tak gai
kabhi dharti se puchhi
kabhi chaand taaron ke aagey roi
kabhi sooraj ke aagey gidgidaai
kabhi hawa se dukhda sunai
kabhi barkha se puchhi,
bataao na tum kahaan ho?

yugon se hai meri ye yayavari
ajab aboojh paheli zindagi
jaane kahaan-kahaan main bauraai firti
ho mujhmein samaaye jyon gandh kastoori,
jaane kaisi hai ye parinati
is jivan ki bhi hai yahi niyati!

mere hi hisse mein
akhir kyon?
mere yayavari kyo?
bataao na...!

- Jenny Shabnam (5. 5. 2010)
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8 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  2. कस्तूरी सा जो है, उसे ढूंढना क्या ... तुम मुझमें प्रिय ,फिर परिचय क्या...
    पर , यह भटकन , कुछ तो है !
    बहुत ही अच्छी भावनाएं

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  3. "युगों से है मेरी ये यायावरी
    अज़ब अबूझ पहेली ज़िन्दगी,
    कहाँ कहाँ जाने मैं फिरती बौराई
    हो मुझमें समाये ज्यों गंध कस्तूरी,
    जाने कैसी है ये परिणति
    इस जीवन की भी है यही नियति !".............
    YE PANKTIYAN DIL KO CHU GAYI!!!!
    BAHT ACCHI LAGI KAVITA!!!!!!

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  4. आकांक्षा का उत्कर्ष प्रशंसनीय ।

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  5. आकांक्षा का उत्कर्ष प्रशंसनीय ।

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  6. कस्तूरी सा जो है, उसे ढूंढना क्या ... तुम मुझमें प्रिय ,फिर परिचय क्या...
    पर , यह भटकन , कुछ तो है !

    bahut sundar

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