बुधवार, 1 सितंबर 2010

168. क्या मैं आज़ाद हूँ / Kya main aazaad hoon

क्या मैं आज़ाद हूँ

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"क्या मैं आज़ाद हूँ?"
यह प्रश्न अनुत्तरित है
और एहसास अन्तस् की अव्यक्त पीड़ा
महज़ सीमित हैं 
संविधान के पन्नों में सिमटी आज़ादी और स्वतंत्रता
हम जीवित इन्सानों की हर आज़ादी पर
है अंकुश का आघात बड़ा

सबने कहा, सबसे सुना
कहते ही रहे हैं हम सदा
मैं आज़ाद हूँ, वह आज़ाद है, हम आज़ाद हैं
पर दिखी नहीं कभी इन्सानों की आज़ादी
उनकी चेतना और मन की आज़ादी
हर इन्सान को
अपने धर्म, संस्कार, परम्परा और रिश्तों में
घुटता पाया क़ैदी

क़ौमों और सियासत की जंग में
हर आम इन्सान है जकड़ा
जज़्बात और धर्म पर पहरा
मन की अभिव्यक्ति पर पहरा
तसलीमा और मक़बूल जैसों पर
देशद्रोही और फ़तवा का क़हर है बरपा
दुश्मनों की क्या बात करें
दोस्तों को ज़बह करते देखना भी है सदमा

धर्मों और रिवाजों पर बलि चढ़ते
हम मूक संस्कारों को हैं देखते
अस्मत और क़िस्मत को लुटते-बचते
हर लम्हा हम कितना हैं तड़पते
रात को चैन की नींद सो सकें
हम अपने घरों में ख़ौफ़ से हैं गुज़रते
देश के प्रहरी मुल्कों से ज़्यादा
अपने घर को आतंक से बचाने में
रात जागते, जान हैं गँवाते

एक रोटी के वास्ते नीलाम होती है संतान
और बन्धक बनता है इन्सान 
एक रोटी के वास्ते वतन त्यागता
धर्म बदलता और बदलता अपना ईमान है इन्सान 
एक रोटी के वास्ते कचरे से जानवरों संग
जूठन बटोरता भूखा-लाचार है इन्सान 
एक रोटी के वास्ते 
अपनों के ख़ून का प्यासा बन जाता है इन्सान

न पूछना है, न कहना है
"क्या मैं आज़ाद हूँ"
क़ुबूल नहीं हमें ये आज़ादी
कुछ कर गुज़रना है कि हम मान सकें
''मैं आज़ाद हूँ!''

-जेन्नी शबनम (5.10.2008)
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Kya main aazaad hoon

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"Kya main aazaad hoon?"
yeh prashna anuttarit hai
aur ehsaas antas ki avyakt peeda
mahaz seemit hain 
samvidhaan ke pannon mein simtee aazaadi aur swatantrata
hum jiwit insaano ki har aazaadi par
hai ankush ka aaghaat bada.

Sabne kaha, sabse suna
kahte hi rahe hain hum sada
mai aazaad hoon, wah aazaad hai, hum aazaad hain
par dikhi nahi kabhi insaano ki aazaadi
unki chetna aur mann ki aazaadi
har insaan ko
apne dharm, sanskar, parampara aur rishton mein
ghutata paya qaidi.

Qaumo aur siyasat ki jung mein
har aam insaan hai jakda
jazbaat aur dharm par pahra
mann ki abhivyakti par pahra
Taslima aur Maqbool jaison par
deshdrohi aur fatwa ka qahar hai barpa
dushmano ki kya baat karen
doston ko zabah karte dekhna bhi hai sadma.

Dharmon aur riwajon per bali chadhte
hum mook sanskaron ko hain dekhte
asmat aur qismat ko lut.te-bachate
har lamha hum kitna hain tadapte
raat ko chain ki neend so saken
hum apne gharon mein khauff se hain guzarte
desh ke prahari mulkon se zyada
apne ghar ko aatank se bachane mein
raat jagte, jaan hain ganwaate.

Ek roti ke waste neelaam hoti hai santaan 
aur bandhak banta hai insaan
ek roti ke waste watan tyagta
dharm badalta aur badalta apna iimaan hai insaan
ek roti ke waste kachre se jaanvaro sang
joothan batorta bhukha-laachaar hai insaan
ek roti ke waste 
apno ke khoon ka pyasa ban jata hai insaan.

Na puchhna hai, na kahna hai 
"kya main aazaad hun"
qubool nahi hamein ye aazaadi
kuchh kar gujarna hai ki hum maan saken 
"main aazaad hun!"

-Jenny Shabnam (5.10.2008)
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4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभावित किया आपकी कविता ने..........

    बहुत आग है

    बधाई !

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  2. मुस्टण्डों को दूध-मखाने,
    बालक भूखों मरते,
    जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी,
    दौलत से घर भरते,
    भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार।
    उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
    --
    "कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!"
    --
    योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई!

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  3. प्रभाव शाली रचना.
    आपकी पोस्ट ' २० हज़ार मौतों के बाद रजा की वापसी' को शुक्रवार की चर्चा मंच पर लिया जा रहा है. कृपया अपना वक्तव्य जरूर दीजियेगा.

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  4. बहुत मुश्किल है परिभाषाएं देना. आज़ादी मन:स्थिति भी है.

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