राम नाम सत्य है
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कोई तो पुकार सुनो
कोई तो साहस करो
चीख नहीं निकलती
पर दम निकल रहा है उनका।
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कोई तो पुकार सुनो
कोई तो साहस करो
चीख नहीं निकलती
पर दम निकल रहा है उनका।
वे अपने दर्द में ऐसे टूटे हैं
कि ज़ख़्म दिखाने से भी कतराते हैं
उनकी सिसकी मुँह तक नहीं आती
गले में ही अटक जाती है
करुणा नहीं चाहते
मेहनत से जीने का अधिकार चाहते हैं
जो उन्हें मिलता नहीं
और छीन लेने का साहस नहीं
क्योंकि बहुत तोड़ा गया वर्षों-वर्ष उनको
दम टूट जाए, पर ज़ुबान चुप रहे
इसी कोशिश में रोज़-रोज़ मरते हैं।
चिथड़ों में लिपटे बच्चों की ज़ुबान भी चुप हो गई है
रोने के लिए पेट में अनाज तो हो
देह में जान तो हो
लहलहाती फ़सलें, प्रकृति लील गई
देह की ताक़त, ख़ाली पेट की मजूरी तोड़ गई।
हाथ अकेला, भँवर बड़ा
हाथ अकेला, भँवर बड़ा
उफ़! इससे तो अच्छा है जीवन का अन्त
एक साथ सब बोलो-
''राम नाम सत्य है!''
- जेन्नी शबनम (15.8.2011)
एक साथ सब बोलो-
''राम नाम सत्य है!''
- जेन्नी शबनम (15.8.2011)
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स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंsuraj ko baadlon ke madhya se khinchne ki koshish karti rachna
जवाब देंहटाएंडॉ जेन्नी शबनम जी ,नमस्कार
जवाब देंहटाएंजब कभी भी आपके पोस्ट पर आता हूँ, न जाने क्यूं एक आत्मीय रिश्ते की खूशबू मन को झकझोर जाती है। आपकी रचना की परिपक्वता ही शायद इसका कारण हो सकता है। आपके पोस्ट पर आना अच्छा लगा। धन्यवाद.
अच्छी प्रस्तुति...जीवन की कड़वी सच्चाई को कुरेदती हुई रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना , सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
इससे तो अच्छा है
जवाब देंहटाएंजीवन का अंत,
एक साथ सब बोलो
राम नाम सत्य है...
apki ye rachna katu satya ko darshati hai... ek sashakt rachna ke liye badhai..
बिल्कुल अलग तेवर की कविता ! जन सामान्य के दर्द को बखूबी चित्रित किया है ! यह आपकी संवेदनशीलता ही है कि जीवन की धूप -छांव , प्कोरेम-विराग, भाव-अभाव आप पूरी गहराई से उकेरती हैं । बहुत बधाइ जेन्नी जी
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