मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

307. बेलौस नशा माँगती हूँ

बेलौस नशा माँगती हूँ

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सारे नशे की चीज़ मुझसे ही क्यों माँगती हो
कहकर हँस पड़े तुम
मैं भी हँस पड़ी
तुमसे न माँगू तो किससे भला
तुम ही हो नशा
तुम से ही ज़िन्दगी।  

तुम्हारी हँसी बड़ी प्यारी लगती है
कहकर हँस पड़ती हूँ
मेरी शरारत से वाक़िफ़ तुम
सतर्क हो जाते हो
एक संजीवनी लब पे
मौसम में पसरती है खुमारी। 

जाने किस नशे में तुमने कहा
मेरा हाथ छोड़ रही हो
और झट से तुम्हारा हाथ थाम लिया
धत्त! ऐसे क्यों कहते हो
तुम ही तो नशा हो
तुमसे अलग कहाँ रह पाऊँगी। 

तुम कहते कि शर्मीले हो
मैं ठठाकर हँस पड़ती हूँ
हे भगवान्! तुम शर्मीले!
तुम्हारी सभी शरारतें मालूम है मुझे
याद है, वो जागते सपनों-सी रात
जब होश आया और पल भर में सुबह हो गई। 

ज़िन्दगी उस दिन फिर से खिल गई
जब तुमने कहा चुप-चुप क्यों रहती हो
सुलगते अलाव की एक चिंगारी मुझपर गिरी
और मेरे ज़ेहन में तुम जल उठे
तुम्हारा नशा पसरा मुझपर
ज़िन्दगी ने शायद पहली उड़ान भरी। 

तुम्हारी दी हुई हर चीज़ पसंद है
हर एहसास बस तुमसे ही
एक ही जीवन
पल में समेट लेना चाहती हूँ
सिर्फ़ तुम ही तो हो
जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ। 

- जेन्नी शबनम (दिसम्बर 20, 2011)
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19 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िंदगी उस दिन फिर से खिल गई
    जब तुमने कहा चुप-चुप क्यों रहती हो,
    सुलगते अलाव की एक चिंगारी मुझपर गिरी
    और मेरे ज़ेहन में तुम जल उठे,
    तुम्हारा नशा पसरा मुझपर
    ज़िंदगी ने शायद पहली उड़ान भरी !
    behtareen bhaw

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  2. सिर्फ तुम ही तो हो
    जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ !

    और चाहिए भी क्या.....???
    खूबसूरत....

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  3. तुम्हारी दी हुई हर चीज़ पसंद है
    हर एहसास बस तुमसे ही,
    एक ही जीवन
    पल में समेट लेना चाहती हूँ,
    सिर्फ तुम ही तो हो
    जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ !

    मन के भावों का प्रस्फुटन अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आने के लिए आपको तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ । धन्यवाद ।

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  4. बेहतरीन नज़म..... भावाभिवय्क्ति.....

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  5. सिर्फ तुम ही तो हो
    जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ ..

    बहुत खूबसूरत के लम्हों को समेटा है इस गज़ब की नज़्म में ... मासूम एहसास जगाती है रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन नज़्म...दाद कबूल करें

    नीरज

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  7. वाह!
    बहुत बढ़िया!
    --
    आपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बृहस्पतिवार 22-12-2011 के चर्चा मंच पर भी की या रही है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  8. तुम्हारी दी हुई हर चीज़ पसंद है
    हर एहसास बस तुमसे ही,
    एक ही जीवन
    पल में समेट लेना चाहती हूँ,
    सिर्फ तुम ही तो हो
    जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ !

    बिल्कुल ही अलग अंदाज में कही गई बात,दृश्यों को गति देती सुंदर रचना.

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  9. सिर्फ तुम ही तो हो
    जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ !
    wah.....behad sunder.

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  10. एक संजीवनी लब पे
    मौसम में पसरती है खुमारी !

    ज़िंदगी उस दिन फिर से खिल गई
    जब तुमने कहा चुप-चुप क्यों रहती हो,
    सुलगते अलाव की एक चिंगारी मुझपर गिरी
    और मेरे ज़ेहन में तुम जल उठे,
    तुम्हारा नशा पसरा मुझपर
    ज़िंदगी ने शायद पहली उड़ान भरी !

    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत खुबसूरत नज़्म....
    सादर बधाई...

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  12. ज़िंदगी उस दिन फिर से खिल गई
    जब तुमने कहा चुप-चुप क्यों रहती हो,
    सुलगते अलाव की एक चिंगारी मुझपर गिरी
    और मेरे ज़ेहन में तुम जल उठे,
    तुम्हारा नशा पसरा मुझपर
    ज़िंदगी ने शायद पहली उड़ान भरी !
    ..खूबसूरत भावाभिवय्क्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  13. भावभीनी रूमानियत की अहसास देती एक खूबसूरत कविता ....

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  14. बैलौस नशा माँगती हूँ- कविता में प्यार की अनुभूति को वोभीन्न्न रंगों में डुबोकर खंगाल दिया है । हर पंक्ति में प्यार और जीवन की लौ रौशनी कर रही है । ये पंक्तियां बहुत भावपूर्ण हैं-
    तुम्हारी दी हुई हर चीज़ पसंद है
    हर एहसास बस तुमसे ही,
    एक ही जीवन
    पल में समेट लेना चाहती हूँ,
    सिर्फ तुम ही तो हो
    जिससे अपने लिए बेलौस नशा माँगती हूँ !

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