सोमवार, 28 मई 2012

347. मुक्ति

मुक्ति 

******* 

शेष है अब भी कुछ मुझमें   
जो बाधा है मुक्ति के लिए   
सबसे विमुख होकर भी   
स्वयं अपने आप से 
नहीं हो पा रही मुक्त।    

प्रतीक्षारत हूँ, शायद कोई दुःसाहस करे   
और भर दे मेरी शिराओं में खौलता रक्त    
जिसे स्वयं मैंने ही, बूँद-बूँद निचोड़ दिया था   
ताकि पार जा सकूँ हर अनुभूतियों से   
और हो सकूँ मुक्त। 
   
चाहती हूँ, कोई मुझे पराजित मान   
अपने जीत के दम्भ से   
एक बार फिर मुझसे युद्ध करे   
और मैं दिखा दूँ कि हारना मेरी स्वीकृति थी   
शक्तिहीनता नहीं   
मैंने झोंक दी थी अपनी सारी ऊर्जा   
ताकि निष्प्राण हो जाए मेरी आत्मा   
और हो सकूँ मुक्त।   

समझ गई हूँ   
पलायन से नहीं मिलती है मुक्ति   
न परास्त होने से मिलती है मुक्ति   
संघर्ष कितना भी हो पर   
जीवन-पथ पर चलकर   
पार करनी होती है, नियत अवधि   
तभी खुलता है द्वार और मिलती है मुक्ति।   

- जेन्नी शबनम (26. 5. 2012) 
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23 टिप्‍पणियां:

  1. पूरा रास्ता चलने पर ही तो मंजिल मिलेगी.....
    बहुत गहन भाव.....

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  2. चाहती हूँ
    कोई मुझे पराजित मान
    अपने जीत के दंभ से
    एक बार फिर
    मुझसे युद्ध करे
    और
    मैं दिखा दूँ कि हारना मेरी स्वीकृति थी
    शक्तिहीनता नहीं
    मैंने झोंक दी थी
    अपनी सारी ऊर्जा
    ताकि निष्प्राण हो जाए मेरी आत्मा
    और हो सकूँ मुक्त..............
    ................................
    नहीं हो सकते मुक्त
    जब तक हो खामोश
    जीतने की प्रखरता हो
    और हो हार स्वीकार
    .... नहीं हो सकते मुक्त
    सत्य असत्य का फर्क मालूम है
    पर हों जुबां पर ताले
    नहीं हो सकते मुक्त
    भय की आगोश में किसी उम्मीद की मुस्कान हो
    नहीं हो सकते मुक्त
    .......
    मुक्त होना तो चाहते हो
    ऐसे में यदि जीत नहीं सकते
    तो खेलो ही मत
    धरती पर हिकारत से फेंके गए
    अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
    चोरी करो ....
    यूँ भी तुम चोर कहे जाते हो
    तुम्हारी हर बात झूठ है
    तो झूठ बोलो ....
    देखना लोग विश्वास करने लगेंगे
    और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
    खिलखिलाकर हँस सकोगे ..... इस मुक्ति को आजमा कर देखो

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  3. Jitna samay mila hai use to pura karna hi hoga. Tabhi mukti ka dawar khulega....
    Khubsurat rachna....

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  4. जीवन-पथ पर चलकर
    पार करनी होती है
    नियत अवधि
    तभी खुलता है
    द्वार
    और मिलती है मुक्ति,,,,,,आपने सही कहा,,,,,,,

    सुंदर प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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  5. bahut achchi rachana lagi....shabdo ka umda sanyojan

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रतीक्षारत हूँ
    शायद
    कोई दुःसाहस करे
    और
    भर दे मेरी शिराओं में
    खौलता रक्त
    जिसे स्वयं मैंने ही
    बूंद बूंद निचोड़ दिया था

    बहुत गहरे भावों का उतार चढाव देखने को मिला आपकी रचना में, लाजवाब !

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  7. चाहती हूँ
    कोई मुझे पराजित मान
    अपने जीत के दंभ से
    एक बार फिर
    मुझसे युद्ध करे
    और
    मैं दिखा दूँ कि हारना मेरी स्वीकृति थी
    शक्तिहीनता नहीं
    मैंने झोंक दी थी
    अपनी सारी ऊर्जा
    ताकि निष्प्राण हो जाए मेरी आत्मा
    और हो सकूँ मुक्त
    Kya gazab kee panktiyan hain!

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  8. समझ गई हूँ
    पलायन से
    नहीं मिलती है मुक्ति
    जीवन में ऐसे कितने ऐसे पल आते है जब हमें पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखता उन पलो में ये पंक्तिया ऊर्जा भरने के लिए काफी है

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  9. मैं दिखा दूँ कि हारना मेरी स्वीकृति थी
    शक्तिहीनता नहीं

    Waah...Lajawab kar diya aapki rachna ne...Badhai.

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  10. .बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  11. मुक्त होने की खोज .....
    ये खोज ही महत्वपूर्ण है ....!!
    सुंदेर भाव ...!!
    शुभकामनायें जेन्नि जी ...!!

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  12. संघर्ष कितना भी हो पर
    जीवन-पथ पर चलकर
    पार करनी होती है
    नियत अवधि
    तभी खुलता है
    द्वार
    और मिलती है मुक्ति !
    बहुत ही सुन्दर रचना..

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  13. नियत अवधि पार करने हेतु..प्रतीक्षा अवश्यम्भावी है.

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  14. वाह जेन्नीजी बहुत ही खुबसूरत....जूझने के बाद ही मुक्ति मिल सकती है .....सच कहा आपने .....

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  15. पलायन से
    नहीं मिलती है मुक्ति
    न परास्त होने से....

    सच्ची बात.... सुन्दर रचना...
    सादर.

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  16. मुक्त होने की खोज .....
    ये खोज ही महत्वपूर्ण है ....!!

    बहुत सुदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
    धन्यवाद ।

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  17. JENNY JI AAPKEE KAVITA BAHUT ACHCHHEE
    LAGEE HAI . BADHAAEE .

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  18. JENNY JI AAPKEE KAVITA BAHUT ACHCHHEE
    LAGEE HAI . BADHAAEE .

    जवाब देंहटाएं
  19. आपके इस पोस्ट पर पहले ही अपनी प्रतिक्रिया दे चुका हूं । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष" पर आपकी प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  20. चाहती हूँ
    कोई मुझे पराजित मान
    अपने जीत के दंभ से
    एक बार फिर
    मुझसे युद्ध करे
    और
    मैं दिखा दूँ कि हारना मेरी स्वीकृति थी
    शक्तिहीनता नहीं ....."

    मुक्ति का शसक्त द्वार हैं हिम्मत ! पलायन से मुक्ति ही जीवन की सफलता हैं !बहुत जीवंत हैं यह कविता और अन्दर तक उतारते शब्द ...

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  21. और मैं दिखा दूँ कि हारना मेरी स्वीकृति थी,
    शक्तिहीनता नहीं

    बहुत ही सुन्दर.. चित्त को शान्ति देती रचना...

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