शनिवार, 4 अगस्त 2012

362. मन किया

मन किया

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आज फिर से
तुम्हें जी लेने का मन किया
तुम्हारे लम्स के दायरे में
सिमट जाने का मन किया 
तुम्हारी यादों के कुछ हसीन पल
चुन-चुनकर 
मुट्ठी में भर लेने का मन किया
जिन राहों से हम गुज़रे थे 
साथ-साथ कभी 
फिर से गुज़र जाने का मन किया
शबनमी कतरे सुलगते रहे रात भर
जिस्म की सरहदों के पार जाने का मन किया 
पोर-पोर तुम्हें पी लेने का मन किया 
आज फिर से 
तुम्हें जी लेने का मन किया। 

- जेन्नी शबनम (4. 8. 2012)
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