मन किया
आज फिर से
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तुम्हें जी लेने का मन किया
तुम्हारे लम्स के दायरे में
सिमट जाने का मन किया
तुम्हारी यादों के कुछ हसीन पल
चुन-चुनकर
मुट्ठी में भर लेने का मन किया
जिन राहों से हम गुज़रे थे
साथ-साथ कभी
फिर से गुज़र जाने का मन किया
शबनमी कतरे सुलगते रहे रात भर
जिस्म की सरहदों के पार जाने का मन किया
पोर-पोर तुम्हें पी लेने का मन किया
आज फिर से
तुम्हें जी लेने का मन किया।
- जेन्नी शबनम (4. 8. 2012)
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