स्त्री के बिना
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1.
अग्नि-परीक्षा
अब और कितना
देती रहे स्त्री।
2.
नारी क्यों पापी
महज़ देखने से
पर-पुरुष।
3.
परों को काटा
पिंजड़े में जकड़ा
मन न रुका।
4.
स्त्री को मिलती
मुट्ठी-मुट्ठी उपेक्षा
जन्म लेते ही।
5.
घूरती रही
ललचाई नज़रें,
शर्म से गड़ी।
6.
कुछ न पाया
ख़ुद को भी गँवाया
लांछन पाया।
7.
नारी के बिना
बसता अँधियारा
घर श्मशान।
- जेन्नी शबनम (8. 3. 3013)
(अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)
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bahut hi achha likha hai
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
बेहद खूबसूरती से उकेरी परिभाषा, प्रभावशाली रचना बधाई
जवाब देंहटाएंNice..
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जवाब देंहटाएंईंट पत्तर जोड़ा
मकान बना
स्त्री आई ,घर बना
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!
सच.....
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति!
~सादर!!!
बहुत बढ़िया सन्देशपरक हाइकू!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर हाइकू
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : ''..होली है ..''
शब्द शब्द गहन भाव लिए ....बहुत सुन्दर हाइकु जेन्नी जी ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भावपूर्ण प्रभावी हाइकू,,,बधाई
जवाब देंहटाएंRecentPOST: रंगों के दोहे ,
अति सुन्दर कविता,
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder kavita hai
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरती से आपने स्त्री के स्वरूप को रेखांकित किया है !
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