शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

439. निर्लज्जता

निर्लज्जता

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स्वीकार है मुझे 
मेरी निर्लज्जता
आज दिखाया है भरी भीड़ को मैंने
अपने वो सारे अंग
जिसे छुपाया था जन्म से अब तक, 
सीख मिली थी-
हमारा जिस्म
हमारा वतन है और मज़हब भी
जिसे साँसें देकर बचाना
हमारा फ़र्ज़ है और हमारा धर्म भी,
जिसे कल
कुछ मादा-भक्षियों ने
कुतर-कुतर कर खाया था
और नोच खसोटकर
अंग-अंग में ज़हर ठूँसा था,
जानती हूँ
भरी भीड़ न सबूत देगी
न कोई गवाह होगा
मुझपर ही सारा इल्ज़ाम होगा
यह भी मुमकिन है
मेरे लिए कल का सूरज कभी न उगे
मेरे जिस्म का ज़हर
मेरी साँसों को निगल जाए,
इस लिए आज
मैं निर्लज्ज होती हूँ
अपना वतन और मज़हब 
समाज पर वारती हूँ
शायद 
किसी मादा-भक्षी की माँ बहन बेटी की रगों में 
ख़ून दौड़े
और वो काली या दूर्गा बन जाए

- जेन्नी शबनम (24. 1. 2014)
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16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (26-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    ६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 27/01/2014 को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।


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  3. ६५वें गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें !

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  4. मैं निर्लज्ज होती हूँ
    अपना वतन और मज़हब
    समाज पर वारती हूँ
    शायद
    किसी मादा-भक्षी की माँ बहन बेटी की रगों में
    ख़ून दौड़े
    और वो
    काली या दूर्गा बन जाए

    आमीन।

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  5. खून भी होता है
    कभी कभी शक
    जैसा होता है
    पानी का रंग
    लगता है अब
    लाल होता है
    रगों में हमारे
    कहीं वही तो
    नहीं होता है ?

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  6. संवेदनशील रचना..शुभकामनाएँ.

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  7. बहुत बढ़िया.... आपको भी गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं...

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  8. सुन्दर प्रस्तुति …………भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हो तो पहले खुद को बदलो
    अपने धर्म ईमान की इक कसम लो
    रिश्वत ना देने ना लेने की इक पहल करो
    सारे जहान में छवि फिर बदल जायेगी
    हिन्दुस्तान की तकदीर निखर जायेगी
    किस्मत तुम्हारी भी संवर जायेगी
    हर थाली में रोटी नज़र आएगी
    हर मकान पर इक छत नज़र आएगी
    बस इक पहल तुम स्वयं से करके तो देखो
    जब हर चेहरे पर खुशियों का कँवल खिल जाएगा
    हर आँगन सुरक्षित जब नज़र आएगा
    बेटियों बहनों का सम्मान जब सुरक्षित हो जायेगा
    फिर गणतंत्र दिवस वास्तव में मन जाएगा

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  9. किसी मादा-भक्षी की माँ बहन बेटी की रगों में
    ख़ून दौड़े
    और वो
    काली या दूर्गा बन जाए ।

    आज इसकी जरुरत है ! बहुत अच्छा है !
    ६५ वीं गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
    नई पोस्ट मौसम (शीत काल )

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  10. दिल को छूती समसामयिक कविता ....सारगर्भित लेखन ....धन्यवाद....

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