निर्लज्जता
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मेरी निर्लज्जता
आज दिखाया है भरी भीड़ को मैंने
आज दिखाया है भरी भीड़ को मैंने
अपने वो सारे अंग
जिसे छुपाया था जन्म से अब तक,
सीख मिली थी-
हमारा जिस्म
हमारा वतन है और मज़हब भी
जिसे साँसें देकर बचाना
हमारा फ़र्ज़ है और हमारा धर्म भी,
जिसे कल
कुछ मादा-भक्षियों ने
कुतर-कुतर कर खाया था
और नोच खसोटकर
अंग-अंग में ज़हर ठूँसा था,
जानती हूँ
भरी भीड़ न सबूत देगी
न कोई गवाह होगा
मुझपर ही सारा इल्ज़ाम होगा
यह भी मुमकिन है
जिसे छुपाया था जन्म से अब तक,
सीख मिली थी-
हमारा जिस्म
हमारा वतन है और मज़हब भी
जिसे साँसें देकर बचाना
हमारा फ़र्ज़ है और हमारा धर्म भी,
जिसे कल
कुछ मादा-भक्षियों ने
कुतर-कुतर कर खाया था
और नोच खसोटकर
अंग-अंग में ज़हर ठूँसा था,
जानती हूँ
भरी भीड़ न सबूत देगी
न कोई गवाह होगा
मुझपर ही सारा इल्ज़ाम होगा
यह भी मुमकिन है
मेरे लिए कल का सूरज कभी न उगे
मेरे जिस्म का ज़हर
मेरी साँसों को निगल जाए,
इस लिए आज
मैं निर्लज्ज होती हूँ
मेरे जिस्म का ज़हर
मेरी साँसों को निगल जाए,
इस लिए आज
मैं निर्लज्ज होती हूँ
अपना वतन और मज़हब
समाज पर वारती हूँ
शायद
शायद
किसी मादा-भक्षी की माँ बहन बेटी की रगों में
ख़ून दौड़े
और वो काली या दूर्गा बन जाए।
और वो काली या दूर्गा बन जाए।
- जेन्नी शबनम (24. 1. 2014)
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सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (26-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक 27/01/2014 को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंएक मंच[mailing list] के बारे में---
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६५वें गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमैं निर्लज्ज होती हूँ
जवाब देंहटाएंअपना वतन और मज़हब
समाज पर वारती हूँ
शायद
किसी मादा-भक्षी की माँ बहन बेटी की रगों में
ख़ून दौड़े
और वो
काली या दूर्गा बन जाए
आमीन।
खून भी होता है
जवाब देंहटाएंकभी कभी शक
जैसा होता है
पानी का रंग
लगता है अब
लाल होता है
रगों में हमारे
कहीं वही तो
नहीं होता है ?
संवेदनशील रचना..शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.... आपको भी गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति …………भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हो तो पहले खुद को बदलो
जवाब देंहटाएंअपने धर्म ईमान की इक कसम लो
रिश्वत ना देने ना लेने की इक पहल करो
सारे जहान में छवि फिर बदल जायेगी
हिन्दुस्तान की तकदीर निखर जायेगी
किस्मत तुम्हारी भी संवर जायेगी
हर थाली में रोटी नज़र आएगी
हर मकान पर इक छत नज़र आएगी
बस इक पहल तुम स्वयं से करके तो देखो
जब हर चेहरे पर खुशियों का कँवल खिल जाएगा
हर आँगन सुरक्षित जब नज़र आएगा
बेटियों बहनों का सम्मान जब सुरक्षित हो जायेगा
फिर गणतंत्र दिवस वास्तव में मन जाएगा
kya baat hai......
जवाब देंहटाएंकिसी मादा-भक्षी की माँ बहन बेटी की रगों में
जवाब देंहटाएंख़ून दौड़े
और वो
काली या दूर्गा बन जाए ।
आज इसकी जरुरत है ! बहुत अच्छा है !
६५ वीं गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं !
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नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
दिल को छूती समसामयिक कविता ....सारगर्भित लेखन ....धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंगहरे भाव ... लावे से शब्द ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव...
जवाब देंहटाएंउम्दा पंक्तिया
जवाब देंहटाएंगहन ....हृदयस्पर्शी ...!!
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