सोमवार, 28 अप्रैल 2014

453. गुमसुम ये हवा (स्त्री पर 7 हाइकु) पुस्तक 54

गुमसुम ये हवा 

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1.
गाती है गीत
गुमसुम ये हवा
नारी की व्यथा। 

2.
रोज़ सोचती
बदलेगी क़िस्मत
हारी औरत। 

3.
ख़ूब हँसती
ख़ुद को ही कोसती
दर्द ढाँपती। 

4.
रोज़-ब-रोज़
ख़ाक होती ज़िन्दगी
औरत बंदी। 

5.
जीतनी होगी
युगों पुरानी जंग
औरतें जागी। 

6.
बहुत दूर
आसमान ख़्वाबों का
स्त्रियों का सच।  

7. जीत न पाई
ज़िन्दगी की लड़ाई
मौन स्वीकार। 

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2014)
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13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 30 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपके सारे हाइकु स्त्री की दशा और दिशा को बखूबी चित्रित करते हैं ंआरी विवशता का आपने सटीक चित्र्ण किया है । आपके ये हाइकु बहुत प्रभावित करते हैं-

    बहुत दूर
    आसमान ख़्वाबों का
    स्त्रियों का सच !
    2
    जीत न पाई
    ज़िन्दगी की लड़ाई
    मौन स्वीकार !

    जवाब देंहटाएं
  3. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 01/05/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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  4. अलग अलग आयाम प्रस्तुत करती रचनाएँ!!बहुत कुछ बदला है!! प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!

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  5. नारी से जुड़े ज़मीनी हालात को बाखूबी उतारा है इन हाइकू में ...

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-04-2014) को ""सत्ता की बागडोर भी तो उस्तरा ही है " (चर्चा मंच-1598) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. गहरे अर्थ लिये स्त्री पर भावपूर्ण हाइकू
    बहुत सुन्दर-----

    आग्रह है----
    और एक दिन

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