रविवार, 11 मई 2014

455. अवसाद के क्षण

अवसाद के क्षण

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अवसाद के क्षण 
वैसे ही लुढ़क जाते हैं 
जैसे कड़क धूप के बाद शाम ढलती है
जैसे अमावास के बाद चाँदनी खिलती है 
जैसे अविरल अश्रु के बहने के बाद 
मन में सहजता उतरती है। 
 
जीवन कठिन है 
मगर इतना भी नहीं कि जीते-जीते थक जाएँ 
और फिर ज्योतिष से 
ग्रहों को अपने पक्ष में करने के उपाय पूछें
या फिर सदा के लिए 
स्वयं को स्वयं में समाहित कर लें। 
 
अवसाद भटकाव की दुविधा नहीं 
न पलायन का मार्ग है 
अवसाद ठहरकर चिन्तन का क्षण है 
स्वयं को समझने का 
स्वयं के साथ रहने का अवसर है। 

हर अवसाद में
एक नए आनन्द की उत्पत्ति सम्भावित है
अतः जीवन का ध्येय  
अवसाद को जीकर आनन्द पाना है। 

-जेन्नी शबनम (11.5.2014)
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13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सकारात्मक द़्ष्टि है -अवसाद के क्षणों का उपयोग - भटकाव या पलायन नहीं, सिर्फ़ अपने साथ रह जाने की मनस्थिति!

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  3. सच है कठिनाई के पलों में ही जीवन का मजबूत संबल मिल पाता है ...

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  4. अवसाद के बाद जिंदगी के लिए नयी राह खुलती है

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  5. सच कहा जेन्नी जी। अच्छा सन्देश देती रचना।

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. अवसाद के खारे सागर में डुबकी लगाकर ही आनन्द के रत्न पाये जा सकते हैं!! बहुत ही सुन्दर कविता!!

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की ८५० वीं बुलेटिन खेल खतम पैसा हजम - 850 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. अवसाद
    ठहर कर चिंतन का क्षण है
    स्वयं को समझने का
    स्वयं के साथ रहने का
    अवसर है,

    बहुत सही कहा।

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  9. वाह , सच कहा आपने । अवसाद को जीकर आनन्द पाना ही जीवन का ध्येय है । आशा की यही किरण तो जीवन को जीने लायक बनाए रखती है ।

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  10. मैने इस पर कमेंट दिया था -स्पैम में पड़ा होगा!

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