आँखें रोएँगी और हँसेंगे हम
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ये आँखें रोएँगी और हँसेंगे हम।
सपनों की बातें सारी झूठी-मुठी
लेकिन कच्चे-पक्के सब बोएँगे हम।
मालूम तो थी तेरी मग़रूरियत
पर तुझको चाहा कैसे भूलेंगे हम।
तेरे लब की हँसी पे हम मिट गए
तुझसे कभी पर कह न पाएँगे हम।
तुम शेर कहो हम ग़ज़ल कहें
ऐसी हसरत ख़ुद मिटाएँगे हम।
तू जानता है पर ज़ख़्म भी देता है
तुझसे मिले दर्द से टूट जाएँगे हम।
किसने कब-कब तोड़ा है 'शब' को
यह कहानी नही सुनाएँगे हम।
- जेन्नी शबनम (5. 2. 2015)
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आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (06.02.2015) को "चुनावी बिगुल" (चर्चा अंक-1881)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है !
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास
तुम शेर कहो हम ग़ज़ल कहें
जवाब देंहटाएंऐसी हसरत ख़ुद मिटाएँगे हम !
..बहुत सुन्दर ...
वाह क्या बात है । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंतू जानता है पर ज़ख़्म भी देता है
जवाब देंहटाएंतुझसे मिले दर्द से टूट जाएँगे हम ...
शायद वो यही चाहता है ... टूट जाएँ बिखर जाएँ हम ... पर प्रेम में बिखरना कहाँ होता है ...
जो लिखा वो बहुत अच्छा है... भाव भी स्पष्ट हो रहे हैं. लेकिन सोच रहा था कि इसे ग़ज़ल कहूँ या न कहूँ, तो देखा कि इसके लेबल में आपने लिखा है तुकबन्दी/ अग़ज़ल... तुकबन्दी तो नहीं कहूँगा मैं, और अगज़ल जैसा कुछ होता नहीं. इसलिये जो भी है प्यारी अभिव्यक्ति है!
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