सोमवार, 21 सितंबर 2015

497. मग़ज़ का वह हिस्सा

मग़ज़ का वह हिस्सा

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अपने मग़ज़ के उस हिस्से को 
काट देने का मन होता है
जहाँ पर विचार जन्म लेते हैं
और फिर होती है
व्यथा की अनवरत परिक्रमा। 

जाने मग़ज़ का कौन-सा हिस्सा जवाबदेह है
जहाँ सवाल-ही-सवाल उगते हैं, जवाब नहीं उगते
जो मुझे सिर्फ़ पीड़ा देते हैं। 

उस हिस्से के न होने से
न विचार जन्म लेंगे
न वेदना की गाथा लिखी जाएगी
न कोई अभिव्यक्ति होगी 
न कोई भाषा 
न कविता

-जेन्नी शबनम (21.9.2015)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. गहरा क्षोभ है आपकी रचना में ... पर कई बार सोच का रहना जरूरी होता है ...

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  2. मष्तिष्क में विचारों का न होना कहाँ संभव है. जितना इनसे दूर भागना चाहते है, उतना ही और गति से आने लगते हैं...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 22 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. क्या बात - अद्भुत

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दिल,दिमाग और आप - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. मगज में सवाल के जाल में जवाब उलझ कर रह जाते हैं
    बहुत बढ़िया

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  7. बहुत सुंदर ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें. और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  8. जिन्दा रखता है मगज इसलिए जिंदगी में करनी पड़ती है मगजमारी ...
    बहुत खूब!

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  9. विचारशील होना , सबके प्रति संवेदना रखना सचमुच में कभी कष्टकारी भी हो जाता है , जब कोई उस चिन्तन को न पढ़े। आपकी ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं-

    जहाँ सवाल ही सवाल उगते हैं
    जवाब नहीं उगते
    और जो मुझे सिर्फ पीड़ा देते हैं,
    उस हिस्से के न होने से
    न विचार जन्म लेंगे

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  10. behtreen abhvyakti hain .....sach ! ismein bahut shakti hai

    is prabhaavi prastuti ke liye aap badhai ki paatr hain !

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  11. behtreen abhivyakti hain ...sach ismein shakti hai ...abhaar !

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