तुम्हारा इंतज़ार है
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नहीं पूछता मेरा हाल
नहीं जानना चाहता मेरी अनुपस्थिति की वजह
वक़्त के साथ शहर भी संवेदनहीन हो गया है
या फिर नई जमात से फ़ुर्सत नहीं
कि पुराने साथी को याद करे
कभी तो कहे- "आ जाओ, तुम्हारा इंतज़ार है!''
कभी तो कहे- "आ जाओ, तुम्हारा इंतज़ार है!''
- जेन्नी शबनम (30. 9. 2015)
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 02 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल के कोने-कोने को ठकठका गई आपकी कविता। आप जैसे लिखने वालों को , अच्छे जैसे लोगों को कोई कैसे भूल सकता है ! आपका लेखन लीक से हटकर है, सदा कुछ नया रहता है। यही कह सकता हूँ -उत्तम !!
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वर्तमान हालातों का सटीक चित्रण | अब ये इंतज़ार लम्हों दिनों महीनों से बीतता हुआ युगों तक होता जा रहा है | सुन्दर सरल बात
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.10.2015) को "दूसरों की खुशी में खुश होना "(चर्चा अंक-2116) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!
उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर ख़याल, बेहतरीन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंआपकी कविताएँ हमेशा दिल छूती हैं...| मेरी बहुत बधाई...|
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