सोमवार, 21 सितंबर 2015

497. मग़ज़ का वह हिस्सा

मग़ज़ का वह हिस्सा

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अपने मग़ज़ के उस हिस्से को 
काट देने का मन होता है
जहाँ पर विचार जन्म लेते हैं
और फिर होती है
व्यथा की अनवरत परिक्रमा। 

जाने मग़ज़ का कौन-सा हिस्सा जवाबदेह है
जहाँ सवाल-ही-सवाल उगते हैं, जवाब नहीं उगते
जो मुझे सिर्फ़ पीड़ा देते हैं। 

उस हिस्से के न होने से
न विचार जन्म लेंगे
न वेदना की गाथा लिखी जाएगी
न कोई अभिव्यक्ति होगी 
न कोई भाषा 
न कविता

-जेन्नी शबनम (21.9.2015)
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